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Wednesday, January 9, 2019

personality development tips in hindi (व्यक्तित्व विकास कैसे करे)

personality development tips in hindi (व्यक्तित्व विकास कैसे करे) 


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personality (व्यक्तित्व) हमारे जीवन का अहम हिस्सा होता हैं जैसा हमारा व्यक्तित्व होता हैं उसी के अनुशार हमारा सोच होता हैं उसी के अनुशार हमरा वौद्धिक छमता होती हैं उसी के अनुशार हम समाज के प्रति जागरूक होते हैं समाज के बिच हमारा छवि हमरा personality (व्यक्तित्व) ही निर्धारित करती हैं अपने व्यक्तित्व को हम कैसे अच्छा बनाये अपने personality development (व्यक्तित्व का विकास) हम कैसे करे जिससे हम अपने समाज, अपने जीवन ,अपने चरित्र ,अपने परिवार ,अपने मित्र समूह ,अपने रोजगार इन सब के बिच एक अच्छा सन्तुलन बैठा सके और अपने personality (व्यक्तित्व) से हम अपने कार्य में सफल हो सके।

एक अच्छे personality (व्यक्तित्व) के व्यक्ति के प्रति समाज हमेशा सहज होती हैं उससे प्रति समाज का हमेसा सकारात्मक सोच होती हैं वे लोगो के बीच आकर्शण का केंद्र होता हैं। लोग उस के जैसा बनना चाहते हैं उस के व्यक्तित्व से लोग प्रभावित होते हैं। वे लोगो के बिच में एक अच्छे व्वहारिक व्यक्ति के रूप में जाना जाता हैं। अच्छे व्यक्तित वाला व्यक्ति अपने समाज के प्रति भी सकारत्मक सोच रखता हैं।

आज हमारे जीवन में personality development (व्यक्तित्व विकाश) का एक अहम् हिस्सा हैं। अगर हमारा personality (व्यक्तित्व) अच्छा हो तो हमें अपने काम में सफलता मिलती हैं। personality development (व्यक्तित्व विकास) के द्रवा ही हम अपने जीवन में भिन्न -भिन्न स्तर पर बदलाव ला सकते हैं। हमे अपने जीवन के हर स्तर पर सफलता पाने के लिए हमरा personality development (व्यक्तित्व विकास ) होना बहुत जरुरी हैं

हम अपने personality development (व्यक्तित्व विकास) के लिए कुछ ऐसे टिप्स समझे गे जिससे हमारे व्यक्तित्व में एक सकारात्मक बदलाव हो सके।

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PERSONALITY क्या होती हैं ?



पहले खुद को पहचाने 

personality development (व्यक्तित्व विकास) के लिए आवश्यक हैं अपने आप को पहचानना अपनी खूबी और अपनी ख़ामी को पहचानना। हम अपने आप को कैसे समझे।
खुद को समझने के लिए हम सबसे पहले अपने दिनचर्या को समझे की पुरे दिन हम क्या करते हैं उसमे हम क्या सकारात्मक करते हैं और क्या नकारात्मक उसको समझे उसके अनुशार अपने आप में बदलाव लाये जिसके द्रवा हमरा व्यक्तित्व का विकाश होगा।

हम अपने आप को समझे की दूसरे के प्रति हमारा व्यवहार कैसा हैं  हमरा सोच कैसा हैं  समाज के प्रति हमारा नज़रिया कैसा हैं। समाज हमारे बारे में क्या सोचता हैं दूसरे लोग हमे कैसे देखते हैं उनकी सोच हमारे लिए कैसी हैं।  वे लोग हमारे बारे में अच्छा सोचते हैं या बुरा अगर बुरा सोचते हैं तो उसका क्या कारन हैं ऐसे ही हमे सभी बातों का समीक्षा कर के खुद में बदलाव लाना होगा जिससे हमारे व्यक्तित्व में विकास हो। किसी के पर्यावरणीय personality development (व्यक्तित्व विकाश) का मुख्य कारण होता हैं उसका पारिवारिक पिष्ट्भूमि, समाज ,सामाजिक पर्यावरण, आनुवंशिक कारण, मित्र समूह ये सभी कारन होते हैं हमारे personality development (व्यक्तित्व विकास) के लिए हमे इन सभी कारणों के समीक्षा कर के अपने आप में बदलाव लाना होगा

व्यवहार (character) को सहज बनाये 

एक अच्छे personality (व्यक्तित्व) के लिए एक अच्छा व्यवहार होना बहुत जरुरी हैं। हमारा व्यवहार जैसा होता हैं उसी के अनुशार हमारा personality (व्यक्तित्व) होता हैं। हमें अपने व्यवहार को अच्छा बनना होगा दुसरो से अच्छे से बात करनी होगी दुसरो से अच्छा व्यवहार करना होगा। जब हम किसी से अच्छा व्यवहार करते हैं तो उसकी सोच हमारे प्रति अच्छी बनती हैं लोग हमसे प्रभावित होते हैं। अच्छा व्यवहार ही हमारे personality development (वयक्तित्व विकाश) को और अच्छा बनता हैं। हमें अपने व्यवहार को अच्छे से समीक्षा करने के बाद उसमे सकारात्मक बदलाव ला कर हम अपने personality development (व्यक्तित्व विकाश) को और खुबशुरत बना सकते हैं।

खुद को मानवतावादी बनाये 

हमें अपने personality development (व्यक्तित्व विकास) के लिए हमारा मानवतावादी होना भी जरुरी हैं। जो व्यक्ति मानवतावादी होता हैं संवेदनशील होता हैं दुसरो का आदर करने वाला होता हैं मानव भावना का आदर करता हैं उसके personality development (व्यक्तित्व विकास) को बहुत अच्छा माना जाता हैं। उदहारण के तौर पे हम अपने इतिहास में देखते हैं की महत्मा गांधी उदारवादी विचार के थे वे मानवतावादी थे वे मानव भावना का आदर करते थे वे मानव के स्वतंत्रता के लिए आंदोलन करते थे उनकी विचारधारा मानवतावादी थी। तो हम उनके सन्दर्भ में देख सकते हैं की वे लोगो के चहेते थे उनका व्यक्तित्व प्रभावशाली था लोग उनका आदर करते थे और करते हैं उनका नेतृत्व प्रभावशाली था। इसे हम समझ सकते हैं की जो व्यक्ति मानवतावादी होता हैं उसका व्यक्तित्व बहुत प्रभावशाली होता हैं लोगो में उसके प्रति आदर होती हैं।

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Monday, December 31, 2018

personality kya hoti hai what is personality (व्यक्तित्व क्या हैं)

personality kya hoti hai what is personality (व्यक्तित्व क्या हैं ?)


हमनें  बहुत सुना हैं व्यक्ति और वयक्तित्व (PERSONALITY) के बारे में लेकिन हम समझ नहीं पाते की PERSONALITY होता क्या हैं। हम अपने स्कूल, कॉलेज या अन्य जगहों पर किसी न किसी को व्यक्तित्व (personality) के बारे में बात करते हुए सुने और देखे होंगे। लेकिन हम उसके सही परिभाषा को नहीं जान पाते हैं। 
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Photo by Subham Dash from Pexels



इस ARTICLE में हम समझे गें कि PERSONALITY क्या होती हैं ? किसी का व्यक्तित्व कैसे निर्धारित किया जाता हैं। किसी का व्यक्तित्व समझने के लिए उस व्यक्ति के कौन -कौन से गुणों को समझा जाता हैं। 

बहुत से मनोवैज्ञानिकों ने personality का अनेकों परिभाषाएं दी है हम आपको उन परिभाषाओ में से कुछ चुनिंदा और प्रचलित परिभाषा बतायेंगे। 

आलपोर्ट (1937) के अनुशार वयक्तित्व शब्द मूल रूप से लैटिन भाषा के शब्द पर्सोना से लिया गया हैं जिसका मतलब होता हैं मुखवटा (नक़ाब) व्यक्तित्व (personality) को चार महत्वपूर्ण अर्थो में प्रयोग किया गया हैं। 

  1. personality व्यक्ति के व्यक्तिगत गुणों का एकीकरण हैं। 
  2. personality को उन रूपों में मन जाता हैं की दूसरे लोग या समाज उस व्यक्ति के बारे में कैसा सोचते और समझते हैं। 
  3. personality (व्यक्तित्व) व्यक्ति द्रारा जीवन में किये गए कार्य और उसके द्रारा निर्वाह की जा रही भूमिका के आधार पर निर्धारित किया जाता हैं। जैसे - उसके व्यवसायिक जीवन सामाजिक जीवन और राजनितिक भूमिका के आधार पर निर्धारित किया जाता हैं। 
  4. personality व्यक्ति के मान्यताओं और विशिष्टताओं के गुणों को सन्दर्भित करता हैं। 

सामाजिक आधार के रूप में व्यक्तित्व 

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आलपोर्ट (1924) - personality को परिभाषित करते हुए कहा हैं सामाजिक उद्दीपक (प्रेरक) व्यक्ति द्रारा अपने समाज और पर्यावरण के सामाजिक स्वरूपों के अनुकूल उसके गुणों के अनुशार उसका चरित्र ही व्यक्तित्व हैं। 

प्रेरणा के रूप में व्यक्तित्व 

हम स्पस्ट देखते हैं की समाज में किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व किसी दूसरे या अन्य व्यक्तियों का व्यक्तित्व का प्रभाव उस व्यक्ति के व्यक्तित्व पर होता हैं। या समाज में एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को प्रभावित करता हैं। 
हम देखते हैं की कोइ व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को बहुत तेजी से और सफलता पूर्वक प्रभावित करता हैं तो उस व्यक्ति का पर्सनालिटी प्रभावशाली माना जाता हैं 
ऐसा हम अपने दैनिक जीवन में भलीभाँति देख सकते हैं की जो व्यक्ति हमें आकर्शित या प्रभाविक करता हो उसके बारे में हम कहते हैं की वह अच्छे personality वाला व्यक्ति हैं। 
लेकिन व्यक्तित्व के यह विचारधार वैज्ञानिक नहीं हैं क्योंकि अलग-अलग व्यक्ति का अलग अलग दिष्टिकोण होता हैं। 

‌मन (1953) - के अनुशार personality व्यक्ति के संरचना के अधिकांश चारित्रिक गुणों जैसे व्यक्ति का व्यवहार, व्यक्ति का रूचि, व्यक्ति का मनोवृति, व्यक्ति का क्षमता ,व्यक्ति का योग्यता तथा अभिक्षमताओ का समाकलन हैं। 

PERSONALITY (व्यक्तित्व) के विशेषगुण 

क्रच एंव क्रेचफील्ड (1958) - के अनुशार विशेषगुण को परिभाषित करते हुए बताया हैं की यह व्यक्ति के विशिष्ठ गुणों का विशेषक हैं जिसके द्रारा व्यक्ति किसी भी परिस्थितियों में व्यक्ति सकारात्मक व्यवहार करता हैं। हम व्यक्ति को उसके तुलनात्मक गतिविधियों और उसके अवलोकन गतिविधियों द्रारा जान सकते हैं 
किसी व्यक्ति का अवलोकन हम उसके विचार , उसके सोच , उसके जागरूकता या इन सभी के प्रति उसका क्या प्रतिक्रिया हैं उसके आधार पर कर सकते हैं। गुणों और सम्पतियों के पक्ष जिसपे हम विचार कर रहे हैं ये सभी "विशेषगुण" हैं। ये "विशेषगुन" व्यवहार सम्बन्धी भी होते हैं और शारीरिक भी होते हैं 

आलपोर्ट के अनुशार व्यक्ति के विशेषगुण कुछ इस प्रकार के होते हैं। 

  1. विशेषगुण की उपस्थिति नाममात्र से अधिक होती हैं। 
  2. विशेषगुण आदतों के तुलना में अधिक सामान्य होती हैं। 
  3. विशेषगुण गतिशील होते हैं अथवा कम से कम निर्धारक के रूप में अवश्य होते हैं। 
  4. विशेषगुणों की उपस्थिति आँकड़ा एंव अनुभव पर स्थापित की जा सकती हैं। 
  5. वयक्तित्व के अनेक विशेषगुण एक दूसरे पर आश्रित नहीं होते। 
  6. मनोवैज्ञानिक आधार पर नैतिक गुण व्यक्तित्व के विशेषगुण नहीं होते। 
  7. कार्य -गुण अथवा आदत जो विशेषगुण के अनुरूप या पक्ष में नहीं होते उनमे विशेषगुण की विद्यमानता  का साक्ष्य नहीं मिलता। 
  8. विशेषगुण अद्वितीय (UNIQUE) तथा सारभैमिक (UNIVERSAL) होते हैं।  
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Monday, December 24, 2018

याददाश्त क्या है mind power in hindi education in hindi

याददाश्त क्या है mind power in hindi education in hindi

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आप इसके पहले के ARTICLE में याददाश्त के बहुत से रूपों के बारे में जान गए हैं की याददाश्त की क्या प्रक्रिया हैं। याददाश्त क्या हैं वो कैसे काम करता हैं। सूचनाओ कौन से पटल पे कितने देर रहती हैं सूचनाओ को स्मरण प्रक्रिया के द्वरा कैसे याद किया जाता हैं।

हम पहले जान गए हैं की याददाश्त की दो प्रचलित प्रकार हैं। उसमें से हम संवेदी पटल और अल्पावधिक स्मृति (छोटी याददाश्त) के बारे में जान चुके हैं।

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yaddasht kya hai yad kaise ki jati hai education in hindi 

आज हम जानेगे की लम्बी याददाश्त क्या हैं ? क्यों कोई बात हमें बहुत दिनों तक याद रहती हैं ? लम्बी याददाश्त कैसे काम करती हैं इश्के क्या कारन। लम्बी अवधी के याददाश्त के आलावा भी हम याददाश्त के बहुत से प्रारूपों  के बारे में जाने गे।

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पुनरावृत्ति (दोहराना)

पुनरावृत्ति हमें हमारे याद को एकाग्रता के केंद्र में रहती है चाहे उसे जोर से दोहराया जाये या धीरे से उसी तरह की प्रक्रिया के बार-बार होने से क्या याद रखना हैं उसे लम्बी अवधि की स्मृति के रूप में बदले में सफल नहीं हो पाते हैं। 
विस्तृत पुनरावृत्ति स्मृति की सफलता अत्यधिक सम्भावी हैं। वृस्तृत पुनरावृत्ति के अंतग्रत तथ्य, अर्थ तथा संगठन आदि उसमे सन्हित रहती हैं क्योकि इनकी पुनरवृत्ति होती रहती हैं। 

दीर्घकालिक स्मृति (लम्बी याददाश्त)

वह याददाश्त जो कई दिनों कई महीनों कई वर्षों या जिन्दगी भर बनी रहती हैं इसके भण्ड़ारण छमता का कोइ ज्ञात नहीं हैं। एक बार दीर्घकालिक स्मृति में सुचना चली गई तो उसके लिए यह अच्छा हैं। 

हमें ऐसा लगता हैं की हम भूल रहे हैं क्यों की जो स्मृति संचय हैं अथवा अतिरिक्त सूचनायें पुनः प्राप्त होती हैं और उस अतिरिक्त सूचनाओं के दबाव के कारन उसे याद रखने में कठिनाई महसुस होती हैं  कई और चीजो के जानकारी हो जाने से हम उन्हें भूल जाते है क्यो की ये हमें भ्रम और बाधा उत्पन करती है और उन्हें दीर्घकालिक स्मृति में छोड़ देती है। दीर्घकालिक स्मृति में विचरो, शब्दो,वाक्यों अवधारणाओं और जीवन के अनुभवों का भण्डारण  होता है। 

स्मृति की दूसरी श्रेणी भी चार प्रकार की होती है। 
(1 ) स्वभाव स्मृति       (2 ) सत्य स्मृति 
(3 )तात्कालिक स्मृति (4 )दिर्घावधि स्मृति। 

स्वभाव स्मृति -  स्वभाव स्मृति वो स्मृति है। जिसमे बिना सोचे हम समझे किसी बिषय पर टिपणी करते है।इस स्मृति मे हम सोचने या तर्क के आधार पर याद की प्रक्रिया का प्रयोग नहीं करते है। इस प्रकार की स्मृति मानसिक स्मृति की अपेक्षा शारीरिक स्मृति मानी जाती है। जिसके के लिए बुद्धि और वास्तिकता का कोई स्थान नहीं होती है।

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सत्य स्मृति -  स्वभाव स्मृति की ठीक विपरीत होती है। इस स्मृति के अंतर्गत हम विषय के  बात को अच्छी तरह समझ कर ही अपनी स्मृति में लाते है। सत्य स्मृति में याद रखने की प्रक्रिया के अंतर्ग़त सोच एवं तर्क पर आधारित होती है। यह सही मायने में बुद्धि और वास्तविकता के लिए मानसिक स्मृति है। कुछ मनोवैज्ञानिक स्मृति के शारीरिक एवं मानसिक आधार पर वर्गीकरण से सहमत नहीं है।  और उनके सम्बंधो के पक्छ में वकालत करते है। 

तात्कालिक स्मृति - जब हम किसी विषय के बारे में तत्काल देख और सुनकर दोहराते हैं तो उसे तात्कालिक स्मृति  करते हैं। तात्कालिक स्मृति दीर्घकालिक स्मृति से भिन्न होती हैं। तात्कालिक स्मृति अस्थाई होती हैं। अध्ययन यह बताते हैं की तात्कालिक स्मृति अवस्था के साथ-साथ विकसित होती हैं। ये किशोरावस्था में तेज़ी से बिकसित होती हैं। 
तात्कालिक स्मृति को शब्दों और संख्यावों के परिणाम के आधार पर जाना जा सकता है। तात्कालिक स्मृति याददाश्त विस्तार का संकेत करती है। और यह स्मृति देखने और सुनने से सम्बंधित हो सकती है। 

दीर्घावधि स्मृति -यह तात्कालिक स्मृति के  विपरीत होती है। हम दीर्घावधि स्मृति का उपयोग हम सीखी हुई बातो को एक निष्चित अंतराल के बाद पुनः उदेश्यों की पूर्ति के लिए करते है। 
जैसे ;हम परीक्षा में लिखने के लिए पहले पढ़े हुये पाठ को याद करते है। और उसे हम अपने उत्तर पुस्तिका  में लिखते है। यह दीर्घावधि स्मृति का रूप है। 

Sunday, December 16, 2018

yaddasht kya hai yad kaise ki jati hai education in hindi

याददाश्त कैसे काम करता है 

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क्या आपको पता हैं कि हमरा याददाश्त कैसे काम करता है। जो कुछ भी हम सुनते हैं या जो कुछ भी हम देखते हैं वह सुना हुआ शब्द हो या देखा हूआ वह चित्र हो वे हमारे यादों का हिस्सा कैसे बन जाता है। जो कुछ हम पहले सीखें होते है या जो कुछ हम सिख रहें होते है वो सारे बातें हमारे यादों में कैसे रहती है यह एक आशचर्यजनक प्रक्रिया है स्मृती का जो हमको याद रखने में मदद्त करता है।

आप जनना चाहते हैं की हमारा याददाश्त कैसे काम करता है उसकी क्या प्रक्रीया हैं और क्यों हमें कोइ बात लम्बी अवधी तक याद रहति हैं और कोइ बात हम तुरन्त भूल जाते हैं। याददाश्त की पूरी प्रक्रीया जानने के लिए की हमारा स्मृति कैसे काम करता हैं ये लेख़ आपको पूरा पढ़ना होगा। 

जो कुछ हमलोग पहले सीखे होते हैं उसे याद रखने का काम स्मृति करती है ये एक मानसिक परिक्रिया है चिंतन और कल्पना इस परिक्रिया में सन्हित है। किसी बिषय या घटना को सीखने या अनुभव करने के बाद स्मृति की परिक्रिया प्रारम्भ होती है। हम अपने आवश्कतानुसार  हम अपनी चेतन से स्मृति को लाते और हम उसे याद कर  के हम अपने उत्तर मे वयक्त करते है।स्मृति के लिए कुछ घटनाये आसान होती है और कुछ मुश्किल होती है।

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स्मृति का प्रथम आवश्यक काम है गुण तथ्य एवं घटनाओ के एकत्र करना। हमें स्कूल मे सिखाया जाता है वही सीखने का स्मृति का पहला प्रक्रिया  है। स्मृति का दूसरा प्रक्रिया है उन तथ्यों एंव घटनाओं को अधिकार मे रखना जो सीखी जा चुकी है। यह सीखें  गए विषयों का संगठन है। स्मृति  का तीसरा प्रक्रिया है उन तथ्यों और घटनाओं को फिर से स्मरण प्रक्रिया के अन्तर्गत लाना जो सीखने के बाद याददाश्त मे बनी रहती है। स्मृति का चौथा प्रक्रिया है मस्तिष्क मे सीखने के बाद उप्लबध उन तथ्यों और घटनाओ को पहचानना जो हमारे मस्तिष्क मे सीखने के बाद बनी हुई है। उसे सच्चे रूप मे पुनः स्मरण कर याद करते है। 

मनोवैज्ञानिकों ने स्मृति को कई प्रकार से वर्णन किया है। जो प्रचलित प्रकार है उनको आप दो रूपों मे समक्षे। 

पहली श्रेणी मे चार प्रकार की स्मृति आती है।

1 संवेदी पटल (सहानभूति पूर्ण )  2 अल्पावधि स्मृति (छोटी याददाश्त)

3 पुर्नावृति (दोहराना )  4 दीर्घावधि स्मृति (लम्बी अवधि की याददाश्त)

संवेदी रास्तों का जो संग्रह का कार्य करता है उसे संवेदी पटल कहते है। अधिकांश सूचनाएं जो संवेदी पटल पर कुछ क्षण के लिए अंकित होती हैं वो समाप्त हो जाती हैं और जो कुछ संक्षिप्त पटल से संग्रहित होती हैं वे भी सामान्यतः संवेदी पटल से नष्ट हो जाती है। हम संवेदी पटल से सूचनाओ की जानकारी प्राप्त करने के लिए अपना ध्यान आकर्षित करते हैं जब हम ऐसा करते हैं तो जो सुचना मिल रही हैं उसे अगले उपयोग के लिए क्षणिक स्मृति को भेज देते हैं। प्रयोग द्वारा दिखाया गया हैं द्रष्टिगत (स्पस्ट दिखाई पड़ने वाला) संवेदी पटल एक सेकेण्ड तक सूचनाओ को रोके रखता हैं जबकि श्रवण (सुनना ) पटल सूचनाओ को लम्बी अवधी तक लगभग 4-5 सेकेण्ड तक रोके रखता है।

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अल्पावधि स्मृति

अल्पावधि स्मृति ( छोटी याददाश्त ) वह याददाश्त हैं जो संवेदी पटल से सूचनाओ को लेकर लगभग 30 सेकेण्ड तक रोकी रहती है रोकने के अवधी के कई कारणों पर निर्भर कराती  है। अल्पावधि स्तर की स्मृति की क्षमता बहुत छोटी होती हैं इसिलिए अधिकांश सूचनाएं जो यहाँ एकत्रित होती हैं वो नष्ट हो जाती है। अतः और अन्य प्रकार की सूचनाएं इनका स्थान ग्रहण कर लेती है। जो सूचनाएं नष्ट होती हैं उसके पहले कुछ सूचनाये फिर से प्राप्त हो जाती हैं और उसका उपयोग हो जाता है। 

जब हम उन सूचनाओ का खोज करते हैं या जब हम पुनः इसके किसी प्रकरण को प्राप्त करने का कोशिश  करते हैं तो प्रत्येक प्रकरण को अल्पावधि स्मृति में परिक्षण करते हैं सूक्ष्म परिक्षण की प्रक्रिया जारी रहती हैं जब तक अल्पावधि स्मृति के सभी प्रकरणों का परिक्षण नहीं हो जाता। छोटी याददाश्त की सूचनाएं न तो पूरी तरह से समाप्त होती हैं और न ही फिर से प्राप्त होती है। बल्की दूसरे स्मृतीस्तर में चली जाती है।


हम आगे की आर्टिकल में बताये गें की कैसे कोई याददाश्त हमारे दिमाग में हमेशा के लिए रह जाती हैं और उसको हम अपने जरुरत के अनुशार उसका कैसे उपयोग करते हैं।

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Saturday, September 22, 2018

how to control child anger in hindi (बच्चों के गुस्से को कैसे कम करें )

गुस्सा आना एक साधारण भावना है जो व्यक्ति की मनोदशा को दर्शाता 

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बच्चो को गुस्सा आना भी एक प्रकार का भावना है जो उनकी परेशानी को दर्शाने का प्रतिक होता है। बच्चो को कीतना गुस्सा अत है ,कैसे अता है और उसके क्या कारण है। इसे  जानना  की बच्चे क्यों गुस्सा कर रहे  है। उनके  माता- पिता  को जरुरी हैं। गुस्सा आना एक साधारण प्रक्रिया है लेकिन जब ये अधिक हो जाये  या बच्चा चिरचीरा रहे बार-बार गुस्सा करता हो साधारण सी बात पर ज़िद करने लगे  तो ये बच्चे के लिए हनिकारक सकता  है।

बच्चो को गुस्सा आने के बहुत सारे कारण हो सकते है जिसको जानने के लिए बच्चा का बिकास की प्रक्रीया को जानना होगा।

बाल्यावस्था 

बाल्यावस्था जिसकी अवधी 2 वर्ष से लेकर 12 वर्ष तक  होति है इस अवस्था में बालक में बहुत सारे परिवर्तन होते है। इसी अवधि में भाषा का बिकास, बालक द्व्रारा सीखे गए  कैशलो और खेल का बिकास होता है। बालक स्कूल जाना प्रारम्भ  इसी अवधी में करता है।

सावेगिक बिकास 

प्रारम्भिक बाल्यावस्था में तीव्र संवेग होते हैं। जिसमे बहुधा सांवेगिक विस्फोट भी होते रहते हैं। इसमें बहुत जल्दी गुस्सा आना , तीव्र भय या ईर्ष्या होते हैं। तथा इनका कारण लम्बे समय तक चलने वाले और थका देने वाले खेल या बहुत कम भोजन करना हो सकता है
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माता-पिता के साथ सम्बन्ध 

बच्चो के लिए बहुत आवश्यक होता है की उनके माता-पिता के साथ उनका सम्बन्ध अच्छा हो। माता-पिता के साथ ख़राब सम्बन्ध बच्चे के ऊपर विध्वंशकारी प्रभाव परता है। क्यूंकि बच्चे माता-पिता पर बहुत अधिक मात्रा में आश्रित होते हैं। इसके अतिरिक्त बालक की सुरक्षा भी माता-पिता के इर्द -गिर्द ही रहती है।

इसीलिए माता-पिता के साथ ख़राब सम्बन्ध या उनकी अनुपस्थिति बालक व्यक्तित्व के विकाश को भी प्रभावित करता है।

व्यक्तित्व विकाश 

बालक के व्यक्तित्व का विकास  परिवार के अंदर ही होती हैं।  क्यूंकि बच्चे का सामाजिक संसार उसके माता-पिता ,भाई,बहन तथा अन्य सम्बन्धी जो उनके साथ रह रहे हैं। और वे बच्चे के विषय में जैसा सोचते हैं बच्चा उसे ही देखता है।  तथा अपने आत्म के रूप में स्वीकार करता है। मित्र समूह का भी प्रभाव आत्म सम्प्रत्यय पर होता है, जो बच्चे के प्रति उनकी मनोवृति से प्रकट होता है । तथा वह बच्चे पर परिवार के प्रभाव को और मजबूत बना सकता है। तथा स्थापित कर सकता है या उनका विरोध कर उसे ध्वस्थ कर सकता है।

बाल्यावस्था में क्रोध और संकट के कारण 

एक पूर्व विद्यालयी बालक जो अक्सर नकारात्मक या दुःखदायी  संवेगों जैसे , क्रोध आदि का अनुभव करता रहता है उसमे नकारात्मक प्रवृति का विकास होने का सांवेगिक संकट रहता है। बाल्यावस्था के प्रारंभ में ही बालक को अपने पर्यावरण में स्वयं तथा अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों के बीच संवेंगिक जुड़ाव स्थापित करने सीखना आवश्यक होता है।  बालक को माता के साथ एक स्थायी एवं स्नेहपूर्ण सम्बन्ध की आवश्यकता होती हैं जो अन्य संबंधों में विस्तारित  होतीं हैं। ऐसे बहुत से कारण और परिश्थितियां होतीं हैं जो बालक के सामाजिक समायोजन की मात्रा को प्रभावित करती हैं।

1. यदि बालक का व्यवहार या भाषा लोकप्रिय नहीं है तो वह अकेला हो जाता है तथा समूह परिस्थितियों में     सिखने का अवसर कम  है।
2. बच्चे पर अपने लिंग के अनुरूप खेलों में भाग लेने का शक्तिशाली दबाव उसे परेशान कर देता है तथा वह          तिरस्कृत हो सकता है।
3. वे बालक जो अपनी आयु , लिंग या जाती के कारण दु:खदायी सामाजिक परिस्थितियों का सामना करते हैं वे        स्वयं के बचाव में सभी सामाजिक संबंधों से दूर हो जाते हैं।
4. वे बच्चे जो अधिकांशतः पालतू या काल्पनिक साथियों के साथ खेलते हैं वे प्रभावशाली प्रवृति के होते हैं। इसका     परिणाम सामाजिक कुष्मायोजन होते हैं।
5. ऐसे बच्चे जिनके सदैव बहुत से खेल के साथी रहे हैं वे अकेले किस प्रकार परिश्थितियों को संभाला जाता है ,       नहीं सिख पाते हैं और इस प्रकार से बिलकुल अकेले हो जाते हैं।

बच्चों में नैतिकता का विकाश कैसे करें

माता-पिता को बच्चे को निरंतर गलत से सही की ओर ले जाने वाली शिक्षा देनी चाहिए।अगर माता-पिता  बच्चे के किसी बात को गलता बताते हैं और अगले ही दिन उसी बात को सही मानकर अनदेखी कर देते हैं तो बच्चा भ्रमित हो जाता हैं।
--अगर बच्चे के गलतियों के लिए उसके माता-पिता उसे दण्डित करते  हैं और उसी बात को उसके मित्र समूह सराहना करते हैं तो गलत व्यवहारों के प्रति बालक में सकारात्मक सोंच बन जाती है इसीलिए केवल गलत व्यवहार ही नहीं अपितु उनके प्रति अभिवृतियों की जांच की भी आवश्यकता होती हैं।

माता-पिता को क्या करना चाहिए 
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माता-पिता द्वारा बच्चे को निरंतर एवं स्थिर रूप से सही और गलत की शिक्षा देनी चाहिए।
बच्चे के किसी भी भूल को अनुमति देना , स्वीकारना , या दयापूर्वक देखना नहीं चाहिए। यह गलत व्यवहार छोड़ने के लिए प्रबलन का कार्य करता है।
बच्चे को अत्यधिक दंड देना बच्चे को विनाश की ओर  ले जाते हैं।
अच्छे व्यवहार के लिए प्रसंसा , पुरस्कार एवं पारितोषित और कभी-कभी स्थिर दंड बच्चे में नैतिकता विकसित करती है।
बच्चे के पालन-पोषण में प्रेम एवं स्वीकृति पर आधारित होना चाहिए।

बालक को  प्रसन्नता से रखें

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--एक बालक जो प्रसन्न रहता है। वो एक पूर्ण रूप से व्यक्ति के रूप में विकसित होता है। बच्चे के प्रसन्ता के लिए माता -पिता को बच्चे की स्वकृति  प्रदान करने का उत्तरदायित्व  ग्रहण करना चाहिए।
माता -पिता द्वारा बच्चे को उसके रंग रूप ,लिंग उसके शक्तियो या कमियों के बिना ही स्वीकार करना चाहिए। बच्चे को अपने बिच भरपुर स्वागत करना चाहिए तथा बच्चे को इस बात का एहसास करना चाहिए की वे उसे चाहते हैं।

--माता -पिता द्रारा बच्चे की मूल आवस्यक्ताओं की पूर्ति की जनि चाहिए। उचित भोजन एवं पोषाहार से बच्चे को उनकी स्वीकृति एवं आवस्यकता अनुभव करने में सहायता प्रदान करते हैं। बच्चे को स्वच्छ रखने तथा बिजली , आग ,दुर्घटनाओ आदि खतरों से उनकी रक्षा हेतु सुरक्षा हेतु सुरक्षित पर्यावरण प्रदान करने से बालक के मष्तिस्क में स्वीकृति का संचार होगा।

--माता -पिता को खाली समय निकाल कर कुछ समय बच्चो के साथ बिताना चाहिए।बच्चो की गतिविधियों में सम्लित होना तथा उन्हें उपलब्ध वृद्धि एवं विकाश के अवसरों में वृद्धि करना बच्चे को स्वीकृति देने के तरीके हैं।
--माता -पिता को बची से आंख मिलाकर बात करना चाहिए। माता -पिता से बात करते समय बचे न केवल भाषा सीखते है बल्कि वे मानसिक रूप से सुरक्षित एवं स्वीकृति का अनुभव  करते हैं।

--आयु के अनुसार तथा बच्चे के रुचियों के अनुरूपउत्तरदायित्वों को बच्चे को सौंपा जाना चाहिए, पौधों को सींचने या घर की सफाई करने में बच्चे की सहायता लेने से बच्चे की स्वीकृति का अनुभव होता है तथा वह परिवार के समूह का अंग होने का अनुभव करता है


--चुम्बन लेना , गोद में लेना आदि स्नेह के प्रदर्सन द्वारा बच्चे में स्वीकृति के साथ साथ जुड़ाव का अनुभव करने में सहायता देते है।

--माता -पिता को गलत से सही , अस्वीकृति से स्वीकृत व्यव्हार की शिक्षा देने में समय लेना चाहिए। इस पुरे प्रक्रिया को बच्चे को अनुशासित करना कहा जाता है। अनुशासन के परिपक्ष्य में ही माता -पिता को बच्चे के समक्ष सही व्यव्हार की व्याख्या करनी चाहिए। इसके साथ ही माता -पिता स्वयं दोनों के बिच तथा दो समय के बिच स्थिरता होनी चाहिए।

-- जल्दी -जल्दी दिया जाने वाला दण्ड प्रभावी भी नहीं होता है तथा बच्चे को समझ में भी नहीं आता। कोई भी      दण्ड अंतिम आश्रय होना चाहिए। दण्ड की मात्रा हमेशा  मूल के अनुपातिक होना चाहिए।  बच्चे को यह ज्ञात होना चाहिए की उसे क्यों दण्डित किया जा रहा है।